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देश का दुर्लभ तांत्रिक मंदिर ⋆ Making India



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माँ जीवन शैफाली, बाजना मठ, जबलपुर

चौथे दिन मैं भैरव पहाड़ी पर पहुंचा तो कोहरा-सा छाया हुआ था, पर कुछ ही समय बाद कोहरा छंट गया और प्रखर धूप निकल आई. यह मेरे लिए शुभ संकेत था. भैरव पहाड़ी की चढ़ाई अत्यंत कठिन और श्रम-साध्य है. लगभग पांच घंटे की जी-तोड़ चढ़ाई के बाद ही मैं ऊपर पहुँच सका.


सामने ही छोटा-सा भैरव मंदिर है, जिसमें भैरव की प्राचीनतम प्रतिमा स्थापित है. उसके आगे पहाड़ी पर ही बड़ा-सा मैदान है, जहां से चारों तरफ का प्राकृतिक दृश्य अत्यंत ही मनोहर और रमणीक है. एक तरफ ऊपर से झरना-सा आता है, जिससे वहां का कुण्ड हमेशा ताजे पानी से लबालब भरा रहता है, इसके पास ही गर्म पानी का भी कुण्ड है, जिसमें से भाप निकलती रहती है. कहते हैं कि चावल की पोटली बनाकर इस गर्म पानी में लटका दी जाय तो दो  मिनट बाद ही चावल सिक जाते हैं.


मुझे कहीं पर भी त्रिजटा दिखाई नहीं दिए. मैंने भैरव मंदिर की परिक्रमा भी की. मंदिर के बगल में ही गुफा है. संभवत: वही त्रिजटा का आवास हो. इसके पीछे पंद्रह-बीस और भी छोटी-छोटी गुफाएं दिखाई दीं, जो सुन्दर और सुरम्य थीं, ऐसा लग रहा था कि इन गुफाओं में भी कोई है, जो कि साधनारत है.


मैं घूमकर भैरव मंदिर के सामने आ गया और भैरव की स्तुति कर एक तरफ बैठ गया. अब तक मैं स्वस्थ हो गया था. गर्म सोते में हाथ-पैर-मुंह धोने से मेरी सारी थकावट दूर हो गयी थी.


अकस्मात् एक तरफ हलचल दिखाई दी. पहले दौड़ते हुए दो-तीन शिष्य ऊपर आये, जैसे कि वे हांफ रहे हों और उनके पीछे ही एक उच्च कोटि का भव्य व्यक्तित्व प्रकट हुआ. लंबा चौड़ा ऊंचा कद, लम्बी जटाएं जो कि कमर तक लटकी हुई थीं, बड़ा सा दिप-दिप करता हुआ चेहरा, जिस पर लाल-सुर्ख बड़ी-बड़ी दो आँखें, विशाल स्कंध, लम्बी-बलिष्ट भुजाएं और चौड़ा रोम मिश्रित सीना.


ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई पुराणों में वर्णित विशाल दानव सामने उपस्थित  हो गया हो. मोटी और पुष्ट जंघाएँ तथा कमर के नीचे व्याघ्र चर्म लपेटे हुए. इसके अलावा पूरे शरीर पर किसी भी प्रकार का कोई परिधान नहीं था. कंधे पर एक मोटा कद्दावर बकरा लिए हुए जब वह मेरे सामने आया तो मैं एक बारगी सिटपिटाकर सहम-सा गया, ऐसा लग रहा था जैसे विशाल हिमालय के नीचे कोई छोटी-सी पहाड़ी खड़ी हो.


उसने जोरों से हुंकार भरी. सच कह रहा हूँ, उस समय लगा, जैसे बांसों का जंगल परस्पर खड़खड़ा  गया हो. हुंकार भरने के साथ ही त्रिजटा ने उस लम्बे चौड़े बकरे को जमीन पर खड़ा किया. वह जीवित बकरा त्रिजटा की विशाल मुट्ठी की कसावट से छूटते ही हड़बड़ाकर अपने पांवों पर खड़ा हुआ, तभी मेरे सामने ही उस त्रिजटा ने उस मोटे ताज़े कद्दावर बकरे को बाएं हाथ से ऊपर उठाया और दाहिने हाथ से उसकी गर्दन मरोड़ दी. एक झटके से गर्दन को खींचकर फेंक दिया और उसके गरम गरम निकलते हुए खून से अपना मुंह लगा लिया. यह सबकुछ पलक झपकते ही हो गया. कुछ ही क्षण में वह सारा खून गटक गया और फिर उसकी लाश को ज़मीन पर फेंक, दाहिने हाथ से मुंह पोंछ, जोरों से “जय भैरवनाथ” कहकर एक तरफ पत्थर की उभरी हुई चट्टान पर बैठ गया.




शिष्यों ने तुरंत टूटी हुई गर्दन को धड़ के साथ लगाकर रख दिया. मेरे लिए यह सबकुछ सर्वथा अप्रत्याशित था. एकबारगी तो मैं अत्यधिक जीवट वाला होने के बावजूद अन्दर से काँप गया और उसकी हुंकार से न चाहते हुए भी मेरा सारा शरीर थरथराने लगा, उसकी नज़र अब सीधे मुझ पर थी, मेरा चेहरा भय से पीला पड़ता जा रहा था, प्रयत्न करके भी मुंह से बोल नहीं निकल पा रहे थे, मेरा सारा शरीर पीपल के पत्ते की तरह काँप रहा था.


अकस्मात् वह व्यक्ति ज़ोरों से हंसा, लगा जैसे पहाड़ पर भूकंप आ गया हो, सारा पहाड़ हड़बड़ाकर नीचे गिर रहा हो, उस हड़बड़ाहट की ध्वनि के आघात से ही मैं ज़मीन पर मजबूरन बैठ-सा गया, परन्तु तभी मुझे सुध हो आई और साहस कर मैं पुन: अपने पैरों पर खडा हो सका.


उसने उस मरे हुए बकरे पर नज़र डाली, त्रिजटा ने कुण्ड से हाथ में जल लेकर कुछ मंत्र पढ़कर उस पर छिड़का और दूसरे ही क्षण वह बकरा जीवित होकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया.


यह मेरे लिए दूसरा बड़ा आश्चर्य था, निश्चय ही त्रिजटा ने “शुको-पासित मृत संजीवनी विद्या” का प्रयोग किया था. जीवित होते ही बकरा चारों पैरों से कूदकर पहाड़ी के नीचे उतर गया.


त्रिजटा ने मेरी ओर घुरा और अपना दाहिना हाथ मेरी पीठ पर लगा दिया. मैं अपने आप को काफी हृष्ट-पुष्ट समझता हूँ, परन्तु मुझे ऐसा लग रहा था कि उसकी हथेली ने मेरी पूरी पीठ को घेर रखा हो. वे बोले– “तुम आ गए? मुझे तुम्हारे आने का संकेत मिल चुका था” मैं थोड़ा आश्वस्त हुआ. मैंने उन्हें अपना नाम बताया और संक्षेप में जानकारी दी कि अब तक मैं कौन कौन सी विद्याएँ सीख चुका हूँ.


जब मैंने उन्हें जानकारी दी कि मेरे गुरुदेव पूज्य श्रीमाली जी हैं और उन्हीं से मैंने तीन वर्ष तह यह थोड़ा बहुत ज्ञान प्राप्त किया है, तो उसका चेहरा प्रसन्नता के मारे खिल उठा. प्रसन्नता के आवेग में उसने दाहिने हाथ से मुझे ऊपर उठा लिया. उसकी हथेली में मैं गेंद की तरह लटका हुआ था. दूसरे ही क्षण उसने धीरे से मुझे ज़मीन पर खड़ा किया और अपने सीने से भींचकर मेरे सर पर करुणा पूरित हाथ फेरा, तो मुझे लगा कि इस कठोर और भयानक व्यक्तित्व के पीछे करुणामय ह्रदय है और उसमें दया, स्नेह, प्रेम तथा मधुरता का सागर लहलहा रहा है.


– उपरोक्त अंश डॉ. नारायणदत्त श्रीमाली की पुस्तक “तंत्र: गोपनीय रहस्यमय सिद्धियाँ ” से लिया गया है.


घर से निकलने से पहले मुझे सिर्फ इतना पता था कि मैं बाजना मठ जा रही हूँ जहां भैरव बाबा का मंदिर है, जिसे आध्यात्मिक रूप से बहुत ऊर्जावान क्षेत्र माना जाता है. मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए मैं इस अपेक्षा के साथ जा रही थी कि उस क्षेत्र में प्रवेश करने पर मैं किसी तरह की विशेष ऊर्जा अनुभव करूंगी…


सीढ़ियाँ चढ़ते हुए जब मैं मंदिर के द्वार पर पहुँचने ही वाली थी कि एक दाढीवाले व्यक्ति को सीढ़ियाँ उतरते देखा… कम से कम चार पांच सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उनकी नज़रें मेरी नज़रं से जुड़ी रही… गहरी लाल बड़ी बड़ी आँखें… मेरे देखने का कारण यह था कि अक्सर मुझे ऐसी विशेष जगह पर इसी रूप रंग वाला एक शख्स ज़रूर मिलता है. ऐसे ही एक दाढ़ी वाले व्यक्ति मुझे श्री एम के जबलपुर आगमन पर मानस भवन में उनके कार्यक्रम में मिले थे. ऐसी ही दाढ़ी, बड़ी बड़ी आँखें, मेरे बाजू में बैठे अपने मोबाइल पर कुछ करते हुए पूरे टाइम मुस्कुराते रहे… मैं उनको देखती रही और पहचान ने की कोशिश करती रही कौन है ये… कहाँ देखा है… इतना जाना पहचाना चेहरा….


shrim ma jivan shaifaly jabalpur visit making indiaएक तो सामने श्री एम और बाजू में ये रहस्यमय व्यक्ति, मुझे समझ नहीं आ रहा था… कहाँ अपना ध्यान लगाऊँ… मेरा ध्यान पूरे समय श्री एम की ओर था… फिर वो  बाजू में बैठे दाढ़ी वाले व्यक्ति कब और कहाँ चले गए मुझे पता नहीं चला, बस वहां के लिए हुए फोटो में उनकी एक धुंधली सी तस्वीर आ सकी.


बस ऐसे ही बाजना मठ की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ये मिले, मैं सिर्फ इसलिए देखती रही क्योंकि मुझे फिर वही भाव आ रहा था कि मैं इन्हें बहुत अच्छे से जानती हूँ… उनकी तरफ क्या चल रहा था मैं नहीं जानती क्योंकि मुझे देखने के बाद वो सीढ़ियाँ उतरना छोड़ दोबारा मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे और मुझसे पहले मंदिर के द्वार पर लगी ऊंची घंटियाँ बजाने की  कोशिश करने लगे और फिर घंटी बजाने के बाद मंदिर के अन्दर जाने के बजाय दोबारा सीढ़ियाँ उतरने लगे लेकिन उतरने से पहले उन्होंने मेरे हाथ में प्रसाद दिया…


मुझे लगा घंटी बजाते समय शायद उनके हाथ में प्रसाद नहीं था.. मैंने हाथ में प्रसाद लिया, और दो मिनट उसे देखती रही… वो दाढ़ी वाले व्यक्ति तब तक सीढ़ियाँ उतर कर जाने लगे मैंने पलटकर देखा लेकिन इसबार वो नहीं पलटे … प्रसाद देखते हुए मुझे स्वामी ध्यान विनय की बात याद आई कि घर के बाहर कुछ खाना नहीं है, और किसी का दिया हुआ तो बिलकुल नहीं… मैं असमंजस में थी क्या करूं, प्रसाद ही तो है, फिर मैंने पता नहीं क्यों उसे मंदिर के प्रांगण में जल रहे हवन कुण्ड में डाल दिया…


उपरोक्त दोनों किस्से बताने के पीछे उद्देश्य बस यही है कि जीवन में ऐसा बहुत कुछ है जो हमारे सामने ही घटित होता है और हमें दिखाई नहीं देता, हमारी दिखाई देने वाली दुनिया के अलावा भी एक दुनिया और है, सिर्फ तांत्रिकों की दुनिया की बात नहीं कर रही. तंत्र का अर्थ होता है सिस्टम, और इस सिस्टम को संचालित करने के लिए लगाए गए लोग जिनके आदेशों पर काम करते हैं उनका इस सिस्टम को कार्यरत रखने के पीछे क्या उद्देश्य हैं, ये रहस्यमयी दुनिया कौन सी सी है… और सबसे बड़ी बात यह सब बातें मुझे इतना आकर्षित क्यों करती है? क्यों मुझे बार बार यह अनुभव होता है कि मैं इसी सिस्टम का हिस्सा हूँ लेकिन अपनी ही भूमिका से अनजान…


खैर मंदिर के अन्दर मुझे कुछ ख़ास अनुभव नहीं हुआ, लगा बस जाना पहचाना सा वातावरण है… जिसकी मुझे आदत सी है… तब तक मैं नहीं जानती थी बाजना मठ में बने इस मंदिर को तांत्रिक मठ भी कहते हैं, ये मुझे मंदिर से बाहर निकल थोड़ी ऊंचाई पर जाने पर पता चला जब मैंने मंदिर के गुम्बज पर लिखा पाया “तांत्रिक मठ”…


तांत्रिक मठ है, भैरों का मंदिर है तो माँ काली भी आसपास ही होना चाहिए मुझे इसका अनुमान हुआ जो आगे जाकर सही साबित हुआ…
घर आकर सबसे पहले इस तांत्रिक मठ के बारे में गूगल पर खोज की तो पता चला… यह देश का दुर्लभ तांत्रिक मंदिर है.


सिद्ध तांत्रिकों के मतानुसार यह ऐसा तांत्रिक मंदिर है जिसकी हर ईंट शुभ नक्षत्र में मंत्रों द्वारा सिद्ध करके जमाई गई है. ऐसे मंदिर पूरे देश में कुल तीन हैं, जिनमें एक बाजनामठ तथा दो काशी और महोबा में हैं. बाजनामठ का निर्माण 1520 ईस्वी में राजा संग्राम शाह द्वारा बटुक भैरव मंदिर के नाम से कराया गया था. इस मठ के गुंबद से त्रिशूल से निकलने वाली प्राकृतिक ध्वनि-तरंगों से शक्ति जागृत होती है.


कुछ कथानकों के अनुसार यह मठ ईसा पूर्व का स्थापित माना जाता है. आद्य शंकराचार्य के भ्रमण के समय उस युग के प्रचण्ड तांत्रिक अघोरी भैरवनंद का नाम अलौकिक सिद्धि प्राप्त तांत्रिक योगी के रूप में मिलता है.


तंत्र शास्त्र के अनुसार भैरव को जागृत करने के लिए उनका आह्वान तथा स्थापना नौ मुण्डों के आसन पर ही की जाती है. जिसमें सिंह, श्वान, शूकर, भैंस और चार मानव-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इस प्रकार नौ प्राणियों की बली चढ़ाई जाती है. किंतु भैरवनंद के लिए दो बलि शेष रह गई थी. यह माना जाता है कि बाजनामठ का जीर्णोद्धार सोलहवीं सदी में गोंड राजा संग्राम शाह के शासनकाल में हुआ, किंतु इसकी स्थापना ईसा पूर्व की है.


बाजनामठ को लेकर एक जनश्रुति यह है कि एक तांत्रिक ने राजा संग्राम शाह की बलि चढ़ाने के लिए उन्हें बाजनामठ ले जाकर पूजा विधान किया. राजा से भैरव मूर्ति की परिक्रमा कर साष्टांग प्रणाम करने को कहा, राजा को संदेह हुआ और उन्होंने तांत्रिक से कहा कि वह पहले प्रणाम का तरीका बताए. तांत्रिक ने जैसे ही साष्टांग का आसन किया, राजा ने तुरंत उसका सिर काटकर बलि चढ़ा दी. मार्गशीष महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव जयंती मनाई जाती है. यह दिन तांत्रिकों के लिए महत्वपूर्ण होता है.  जबलपुर वैसे भी तांत्रिक क्रियाओं का गढ़ कहा जाता है.


बाजना मठ का वर्णन इसलिए नहीं किया कि पहाड़ और तालाब से घिरे मनोरम स्थान से बने बाजना मठ सबको घूमना चाहिए. इसका वर्णन इसलिए किया है कि कुछ जगह ऊर्जा के वह केंद्र होते हैं जहां आम इंसान को जाकर उसे दूषित नहीं करना चाहिए. इस तंत्र (system) के लिए जिन्हें नियुक्त किया गया है जिसकी वजह से इस रहस्यमयी दुनिया का रहस्य कायम है, उसका संचालन कायम है ये उन्हीं के लिए संरक्षित होना चाहिए…


मेरा जाना कदाचित उसी योजना का हिस्सा था… प्रत्यक्ष रूप से मुझमें कोई परिवर्तन नहीं आया हो सकता है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से उसने वैसे ही काम किया है जैसे नींद में जाने के बाद आपकी आत्मा पर इन शक्तियों के द्वारा काम होते हैं.


बाजना मठ के आगे ही चौंसठ योगिनी मंदिर है. वहां भी जाना हुआ उस दिन, अगले भाग में उसके बारे में जानकारियाँ दूंगी…


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