ह्रदय में सदैव प्रज्ज्वलित रहेंगी राम जन्मभूमि मंदिर के लिए दी गयी ये आहुतियां ⋆ Making India
अपनी बात कहने से पहले कुछ बातें अग्नि देवता को प्रणाम करते हुए…
पहला किस्सा – कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक लेख पढ़ने को मिला, जो कुछ यूं था-
ध्यान (meditation) में कितनी शक्ति है, इसका एक सिहरन पैदा करने वाला उदाहरण…
तिक क्वांग डुक वियतनाम में रहने वाले एक बौद्ध भिक्षु थे. उन्होंने 11 जून 1963 को तत्कालीन सरकार की नीतियों के विरोध में आत्मदाह कर लिया था. उनके
आत्मदाह के समय मौजूद एकमात्र फ़ोटोग्राफ़र मेलकम ब्राउन ने डुक की जो तस्वीर ली वह पूरे विश्व में चर्चित हुई. मेलकम ब्राउन ने बाद में बताया कि डुक इतने गहरे ध्यान में बैठ गए कि उनका शरीर जलकर राख हो गया पर डुक ज़रा भी नहीं हिले. इस तस्वीर के लिए मेलकम ब्राउन को पुलित्ज़र पुरस्कार प्राप्त हुआ.
दूसरा किस्सा – अपने आध्यात्मिक गुरु श्री एम पर लिखे लेख का अंश –
ब्रह्माण्ड की सारी ऊर्जाएं केवल हमारे लिए ही निर्मित हैं, ये हम पर निर्भर करता है कि हम उसे सकारात्मक शक्ति बनाते है या नकारात्मक… जैसे बिजली का उपयोग हम प्रकाश फैलाने के लिए भी कर सकते हैं, और किसी को करंट देकर मौत के मुंह में सुलाने के लिए भी… ब्रह्माण्ड की ऊर्जा इसी विज्ञान पर काम करती है…
बहुत वर्षों बाद अग्नि की इसी ऊर्जा को किस तरह से सकारात्मक रूप से उपयोग कर ध्यान, ज्ञान और अध्यात्म की ऊंचाइयों को प्राप्त किया जा सकता है उसका वर्णन पढ़ा मेरे गुरु श्री एम के पुस्तक “एक हिमालयवासी गुरु के साए में : एक योगी का आत्मचरित”.
पुस्तक में श्री एम बताते हैं कि उनकी आँखों के सामने उनके गुरु जिन्हें वो बाबाजी कहकर बुलाते हैं, ने अग्नि का आह्वान किया, तो एक लपट जलती धुनी से उठकर देवदार के वृक्ष जितनी बड़ी हुई.
जब बाबाजी ने उसे श्री एम की नाभि को छूने का आदेश दिया तो लपट ने झुककर श्री एम की नाभि को छुआ… श्री एम ने ऊर्जा के उस स्तर को अनुभव किया जिसके लिए किसी तपस्वी को बरसों तपस्या करना पड़ती है. लेकिन यह श्री एम के पिछले जन्मों की तपस्या का ही फल था जो उन्हें इस जन्म में प्राप्त हो रहा था…
उसी अग्नि के बारे में बाबाजी बताते हैं – “यह केवल गोचर आग ही नहीं है जिसे अग्नि कहा जाता है. हर तरह का ज्वलन अग्नि है. अपचय और उपचय की प्रक्रियाएं जो हमारे शरीर का पोषण करती हैं, उन्हें भी पाचन अग्नि कहा जाता है, इसी तरह इच्छा-आकांक्षाओं की अग्नि, चाहे वह अधोमुखी हो या ऊर्ध्वमुखी.
अगर पहले तुम्हारी कोई प्रेमिका थी तो क्या तुम उसे अपनी “पुरानी लौ” नहीं कहते? “पुराना पानी” या “पुरानी वायु” कोई नहीं कहता. क्योंकि प्रेम, इच्छाएं, प्रेरणाएं ये सब एक तरह की आग हैं. कल्पना भी. इसलिए सदियों से अग्नि की पूजा होती आई है.
विश्वास करो, सारी प्रकृति की तरह अग्नि का अपना खुद का मानस है. हमारा मानस अग्नि, आग के देवता, के मानस से घनिष्ठता से जुड़ा है. यहाँ तक कि इसकी लपटें हमारी किसी भी इच्छा को पूरा कर सकती हैं.
और एक तीसरा किस्सा आज ही प्रकाशित एक रेसिपी के सन्दर्भ में –
जिनको लगता है घर में गृहणियों को खाना बनाने के अलावा काम ही क्या होता है, वो ये जान लें कि चूल्हे की आग पर साधारण सी रोटी सेंकने से लेकर रवे यानी सूजी के मीठे लड्डू बनाने तक आपकी ये अन्नपूर्णा आग से खेलती हैं.. क्योंकि यह बात एक कुशल गृहणी ही जानती हैं कि घर में खुशियाँ पकाना हो तो अग्नि देवता को प्रसन्न रखना ज़रूरी है.

अब आते हैं मूल विषय पर –
2002 में क्या हुआ, क्या नहीं, क्रिया और प्रतिक्रिया के साथ किये शब्दों के खेल में कौन जीता कौन हारा, अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों के जलने के बाद राम लला के ह्रदय में क्रोध की अग्नि जली या करुणा का पानी बहा… मैं नहीं जानती…
नहीं मैं यह भी नहीं जानती उस ट्रेन में कितने बच्चे थे, या उस ट्रेन में कितनी महिलाएं थी जिनको ट्रेन की बोगी का दरवाज़ा बंद करके आग के हवाले कर दिया गया…
नहीं मैं यह भी जानना नहीं चाहती कि किस “समुदाय विशेष” ने इस कारनामे को अंजाम दिया था…
मैं बस इतना जानती हूँ कि कुछ समुदायों को हमारे राजनीतिक दलों ने अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए वास्तव में इतना “विशेष” बना दिया है कि अपनी एक कुर्सी के अस्तित्व को बचाने के लिए वो अपने ही “सामान्य समुदाय” के अस्तित्व को इस आग के हवाले करने को तैयार है…
लेकिन वो इस बात से अनजान है कि उनकी खुद की कुर्सी उस बारूद के ढेर पर रखी है जो उनकी ही लगाई हुई आग में कब जलकर भस्म हो जाएगी उनको खुद को पता नहीं चलेगा…
इसलिए नहीं कि वो ध्यान की इतनी गहराई में उतर चुके है कि उस बौद्ध भिक्षु की तरह उन्हें पता भी नहीं चलेगा… इसलिए भी नहीं कि उनको किसी आध्यात्मिक गुरु का आशीर्वाद प्राप्त है और वो आग उनकी नाभि को छूकर उन्हें अग्नि के मानस देवता का आशीर्वाद दे जाएगी… ना ही उन्हें भारत की गृहलक्ष्मियों की तरह अन्नपूर्णा का आशीर्वाद प्राप्त है जो ज्वलनशील अग्नि में हाथ डालकर भोजन रूपी प्रसाद से घर के लोगों की जठराग्नि को तृप्त करती हैं…
उन्हें इसलिए पता नहीं चलेगा क्योंकि वो इस अग्नि देवता का उपयोग अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने में कर रहे हैं… और वो इतने संवेदनहीन हो चुके हैं कि इस बात को भी समझ नहीं पा रहे कि वो उनको रोटियाँ परोस रहे हैं जिनके बच्चे ISIS जैसे असुरों के हाथों मानव मांस खाने के आदि हो चुके हैं…
अग्नि देवता का दुरूपयोग करनेवालों, तुम आज नहीं तो कल जान ही जाओगे कि तुम खुद उस ट्रेन में अपने घर की महिलाओं और बच्चों को सवार करवा रहे हो जो एक दिन इसी तरह The Burning Train के नाम से जानी जाएगी… तुम अपने हाथों से ट्रेन का दरवाज़ा बाहर से बंद कर रहे हो… तुम ट्रेन की बोगी में वो ज्वलनशील पदार्थ छोड़ कर आ रहे हो जिसकी बर्बरता के किस्से हमारे इतिहास के पन्नों को काला कर चुका है…
आग से खेलने का इतना ही शौक है तो वो कूवत पैदा करो कि सद्गुरु जैसे देश के आध्यात्मिक गुरु भी सनातन परम्पराओं के लिए किए जा रहे यज्ञ रूपी कार्यों के हवन कुण्ड में अग्नि प्रज्ज्वलित करने के लिए मोदीजी जैसे योगी के करकमलों का चयन करते हैं….

लेकिन नहीं, तुम तो ईर्ष्या और द्वेष की आग में पहले से ही जलकर भस्म हो चुके हो… तुम वो राख हो जिसे कोई शिव भी अपनी देह पर मलना पसंद ना करें… तुम वो ज़हर हो जो किसी नीलकंठ के कंठ तक नहीं पहुँच सकेगा… वो तो केवल जिह्वा पर अटक कर रह गया है इसलिए तुम्हारे और तुम्हारी राजनीतिक रोटी खाने वालों के मुंह से यही ज़हर निकलता है…. भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह…
हे भारत के मुसलमानों! यदि अब भी अल्लाह के नाम का ऐसा दुरुपयोग नहीं रोका तो याद रखना वसुधैव कुटुम्बकम के ब्रह्माण्डीय नियम पर संचालित यह भारत माता रूपी शक्ति जब अपने रौद्र रूप में आएगी तो तुम्हारे तथाकथित शुभचिंतकों के साथ तुम्हारे अस्तित्व को भी जलाकर भस्म कर जाएगी…
तो हे सनातनियों, गोधरा काण्ड की जलती ट्रेन के लोग राम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए किये गए यज्ञ की वो आहुतियाँ हैं, जो हमारे ह्रदय में हमेशा प्रज्वलित रहेंगी… और याद दिलाती रहेंगी कि हमारे सनातन धर्म में अग्नि को भी देवता के रूप में पूजा गया है… इसलिए हम कभी अग्नि देवता का ऐसा दुरुपयोग कर उसे बदनाम न करें…
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