Breaking News

यौन शिक्षा और देश का चरित्र निर्धारित करता प्रचार ⋆ Making India



भारतीय समाज की आज की स्थिति पर बीती 18 फरवरी को एक समाचार बहुत प्रश्न ले कर आया है. इस समाचार के अनुसार पिछले आठ वर्षों मे गर्भ निरोधक का उपयोग 35 प्रतिशत तक कम हो गया है और आकस्मिक दवाएं (जैसे Ipill, Unwanted 72 इत्यादि) का उपयोग दोगुना हो गया है.


कुछ समय से भारत मे यौन शिक्षा के प्रचार के लिए सरकार और बहुत सी सामाजिक संस्थाएं लगी हैं. मेरे मन मे एक प्रश्न हमेशा रहा है कि शिक्षा के नाम पर क्या बताया जाना है या इसका पाठ्यक्रम क्या है.


पता करने पर लगा कि इसमें बच्चों को यौन शिक्षा के नाम पर पुरुष और स्त्री की शारीरिक संरचना पर कुछ ज्ञान दिया जा रहा है. सदियों से ऐसी शिक्षा के अभाव में भी देश की जनसंख्या बढ़ी जा रही थी, ऐसा माना जा रहा था.


वस्तुत: यौन सम्बन्धों के विषय की जानकारी प्रकृति अपने आप समय आने पर दे देती है. यह अवश्य परिवर्तन हुआ है कि पुरुष और नारी के शारीरिक बदलाव जो शायद 14-16 की आयु में होते थे वह आज जल्दी होने लग गए और इसके साथ हमारा समाज इस परिवर्तन को ठीक से संभाल नहीं पाया.


अब इस पर ज़रा विचार करें…. हम इतने अधिक परिवार नियोजन के बजट, शिक्षा पर खर्च, सर्व शिक्षा अभियान, यौन शिक्षा के प्रचार के बावजूद अपनी नई पीढ़ी को यह नहीं समझा पाये कि सामान्य गर्भ निरोधक उपायों, जैसे कंडोम, नसबंदी, या पुरानी गर्भनिरोधक गोलियों की अपेक्षा Ipill, Unwanted 72 इत्यादि बहुत ही अधिक हानिकारक हैं.


यह सब तब हुआ है जबकि राष्ट्रीय साक्षरता मे वृद्धि होती रही है. अर्थात यह स्पष्ट हो गया है कि इससे शिक्षा का कोई सीधा संबंध नहीं है.


इसे और गौर से देखें तो पता चलता है कि आठ वर्षों मे कंडोम के उपयोग में 52 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है और पुरुष नसबंदी मे 73 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गयी है.




वहीं महिलाओं के उपयोग की अंतरगर्भाशयी गर्भ निरोधक युक्ति में कुछ बदलाव नहीं आया जबकि महिलाओं के खाने वाली गर्भनिरोधक दवाओं में 30 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गयी है.


इन्हीं आठ वर्षों में प्रतिवर्ष आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार गर्भपात 4 लाख से बढ़ कर 9 लाख हो गए हैं. इन्ही वर्षों में अनुमान से 54 लाख गर्भपात किए गए हैं. यह अभी सरकारी आंकड़े हैं.


June 2016 Lancet की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रति वर्ष 111 लाख गर्भपात की दवाइयाँ बेची जा रहीं हैं. जिस देश में 35 करोड़ महिलाएं 15 से 54 की उम्र में हैं वहाँ प्रतिवर्ष 1.11 करोड़ गर्भपात यानि प्रत्येक 30 महिलाओं में से एक गर्भपात की दवाई का सेवन करती है.


थोड़ा सा इसका विचार और इतिहास देखें तो TV के विज्ञापन के कारण इन दवाइयों की बिक्री बढ़ी. पर आप विज्ञापन के प्रकार पर देखें तो यह इस देश की नयी/ अविवाहित स्त्रियॉं या कुंवारी लड़कियों को निशाने पर रख कर बनाए गए विज्ञापन हैं, जिसे सबसे अधिक तथाकथित शिक्षा दी जाती है. इससे देश के चरित्र का क्या हुआ?


फिर घूम कर बात आती है, WTO की शर्तों के कारण अब मीडिया की भूमिका मात्र धन कमाने तक सीमित है, कोई भी अन्य ज़िम्मेवारी नहीं मानते. इस सोच का बदले जाना बहुत महत्वपूर्ण है.



Comments


comments



#Uncategorized

No comments