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जो सच में साबित हुआ देश की धड़कन ⋆ Making India



पाकिस्तान के लायलपुर जिले में एक छोटा सा गाँव पड़ता है कामलिया. तीस के दशक में इस गाँव में एक भरा पूरा परिवार रहता था. भरा पूरा मतलब माता पिता, चार पुत्र. पिताजी अंगेजों की फ़ौज में आर्डिनेंस डिपार्टमेंट में काम करते थे.

सभी बच्चों की शिक्षा सरकारी स्कूल से होती थी. परिवार के सभी सदस्य बेहद मेहनती और स्वाभिमानी थे. इसलिए अंग्रेजों के लिए काम करना इस परिवार को ज्यादा दिन रास नहीं आया.

पूरे परिवार ने निश्चय किया कि कुछ भी हो अब अंग्रेजों की नौकरी नहीं करेंगे. अपना काम शुरू करेंगे. अपने इसी निश्चय के साथ इस परिवार ने 40 के दशक में यानी 1942 में लाहौर और अमृतसर में खुद की साइकल के पार्ट्स की दुकान खोल दी.

धीरे धीरे अमृतसर और लाहौर में ये परिवार साइकल के पार्ट्स बनाने वाले अग्रणी सप्लायर में गिना जाने लगा. 1947 में भारत के दो टुकड़े हो गए भीषण दंगे शुरू हो गए.. लाहौर और अमृतसर जो कभी एक दूसरे के पड़ोसी थे. वो अब अलग हो चुके थे.

करोड़ों लोग इस विभाजन में विस्थापित हो गए, जो परिवार 5 साल से अपना बिजनेस जमाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहा था, उसे मज़बूरी में अपना जमा जमाया घर बार व्यापार छोड़कर हिन्दोस्तान भाग कर आना पड़ा.

सब कुछ उजाड़ चुका था. किसी तरह ये परिवार अपनी जान बचाकर पाकिस्तान से अमृतसर ट्रेन से पंहुचा. अमृतसर पहुंचे तो देखा यहाँ का उनका पुश्तैनी मकान भी दंगे की भेंट चढ़ गया था. यानी दो रोटी के भी लाले पड़ गए.

लेकिन इस परिवार ने तय किया कि वो हार मानाने वाले नहीं है. उन्होंने निश्चय किया कि वो अपने पुराने धंधे यानी साइकल के पार्ट्स ही बेचेंगे यानी सप्लाई करेंगे. इसके साथ सबने निश्चय किया कि वो बेहद साधारण जीवन जीयेंगे.



पचास के दशक में इस परिवार ने पुरानी दिल्ली में 14/18 स्क्वायर फीट की एक दुकान ली और साइकल के पार्ट्स की सप्लाई शुरू की.  1953 में इस परिवार ने साइकल के पार्ट्स की सप्लाई के साथ साथ साइकल के पार्ट्स बनाने की एक छोटी सी फैक्ट्री भी डाल दी…. महज़ एक कमरे में.

कहानी में ट्विस्ट तब आया जब 1956 में तत्कालीन उद्योग मंत्री मनु भाई शाह ने साइकल बनाने का लाइसेंस जारी किया. तब तक ये परिवार दिल्ली में साइकल के पार्ट्स बनाने के लिए जाना जाने लगा था. और पंजाब के तत्कालीन्न मुख्यमंत्री प्रताप सिंह केरो ने इस परिवार को सलाह दी आप लोग साइकल के पार्ट्स छोड़कर साइकल बनाये.

उन दिनों करीब 150 लोगों को भारत सरकार ने साइकल बनाने का लाइसेंस जारी किया था. इसी के साथ 1956 में इस परिवार के सभी सदस्यों ने मिलकर #हीरो ब्रांड के नाम से साइकल बनाने की शुरुवात की. और इस हीरो समूह के संस्थापक थे इस परिवार के सबसे बुजुर्ग और चारों बेटों के पिता बहादुरचंद मुंजाल जी.

लेकिन पूरा परिवार साइकल बनाने के लिए राज़ी नहीं हुआ. सभी भाइयों ने साइकल की फैक्ट्री लगाने के लिए एक शर्त रखी कि अगर हम साइकल बनायेंगे तो बड़े पैमाने पर कोई छोटे पैमाने पर नहीं क्योंकि इसमें लागत ज्यादा और मुनाफा कम होगा.

चारो भाइयों में गज़ब के व्यापारिक गुण थे इसलिए बहादुरचंद मुंजाल जी ने सभी के क्षमता अनुसार उन्हें अलग लग काम दे दिया. मझले बेटे बृजमोहन मुंजाल को बड़ी बड़ी कम्पनियों के साथ डील और लाइजनिंग करने का काम मिला क्योंकि वो बातचीत  करने की कला में दक्ष थे.

बड़े बेटे दयानंद मुंजाल मैन्युफैक्चरिंग में माहिर थे. तीसरे नंबर के उनके पुत्र सत्यानन्द बिजनेस स्ट्रेटजी बनाने में माहिर थे और चौथे नम्बर पे ओम प्रकाश मास्टर के अंदर गजब का सेल्समैन छिपा था. बस एक बिजनेस को चलाने की लिए और क्या चाहिए?

पचास के दशक में अपना बिजनेस शुरू करना कोई बच्चों का खेल नहीं था. दुनिया भर के प्रतिबंध थे. विभाजन में सब लूट चुका था अंग्रेजों की विरासत पर बड़े बड़े घरानों का कब्ज़ा था. टाटा जैसी कम्पनियां अपने पांव पसार रही थी. मुंजाल परिवार खाली हाथ था.

साइकल बनाने का लाइसेंस तो मिला लेकिन एक भी बैंक इस कर्मठी परिवार को कर्ज देने को तैयार नहीं था. हीरो साइकल को 7500 साइकल बनाने की अनुमति मिली. लुधियाना में इस परिवार ने एक कारखाना डाला जिसमें तब प्रतिदिन 25 साइकल बनती थी.

फिर वो दौर भी आया जब भारत सरकार ने उत्पादन पर प्रतिबंध हटा दिया. समय के साथ हीरो साइकल भारत में लोकप्रिय होती गयी. धीरे धीरे हीरो का साइकल उद्योग में ऐसा वर्चस्व हुआ कि बाकी साइकल निर्माता कम्पनियाँ हीरो के सामने गायब हो गईं.

आगे चल कर इसी हीरो समूह ने 80 के दशक में सर्वाधिक साइकल बनाने का रिकार्ड बना कर अपना नाम गीनीज बुक में दर्ज करा लिया. हीरो होन्डा के लुधियाना वाले प्लांट में आज 19500 साइकल रोज़ बनती है.

आज हीरो समूह की सालाना उत्पादन छमता 62 लाख साइकल बनाने की है. हीरो भारत की पहली ऐसी साइकल निर्माता कम्पनी है जिसने एक साल में 56 लाख साइकल बनाने का रिकार्ड बनाया है 2006 में इसी कम्पनी ने 10 करोड़ साइकल बेचकर विश्व रिकार्ड बना दिया.

80 के दशक में हीरो समूह ने जापान की कम्पनी होंडा के साथ करार किया. उन दिनों भारत में हीरो भारत में मोपेड के नाम पर हीरो पुक बनाया करती थी. 83-84 में होन्डा ने हीरो के साथ करार किया लेकिन तब भारत में बजाज स्कूटर का एक छत्र राज चलता था.

होंडा ने भारत में काइनेटिक को स्कूटर और हीरो को मोटर साइकल बनाने के लिए अपना पार्टनर बनाया तो हीरो समूह खुश नहीं था क्योंकि हीरो तो स्कूटर बनाना चाहती थी. लेकिन भाग्य को कुछ और मंजूर था. हीरो और होन्डा ने 26 -26 परसेंट के समान इक्विटी के साथ हीरो होन्डा के साझा उपक्रम की शुरुआत कर दी. हीरो होंडा ने अस्सी के दशक में 100 cc की बाइक लांच की. विज्ञापन दिया पेट्रोल भरो बंद करो और भूल जाओ.

दिल से निकली बात लाखों दिलों तक पहुँची और हीरो होन्डा ने अपनी नयी मॉडल स्प्लेंडर दिल की लगी बाज़ार में निकाली. 1986 में हीरो होन्डा समूह ने मात्र 43 हज़ार बाइक बेचीं थी ..लेकिन 2001 में इसी कम्पनी ने विश्व कितमान स्थापित करते हुवे 14 लाख 25 हज़ार बाइक बेच कर बता दिया कि बाइक की दुनिया में उसका कोई सानी नहीं है.

हीरो बाइक को देश की धड़कन बनाने वाले हीरो समूह ने 2003 के वित्तीय वर्ष में 5107 करोड़ का टर्न ओवर किया ….और कम्पनी के 580 करोड़ का शुद्ध मुनाफा कमाया.

आज हीरो ग्रुप के गुडगाँव और देहरादून प्लांट की क्षमता 39 लाख बाइक सालाना है ….इसके साथ कम्पनी ने उत्तराखंड के हरिद्वार में भी एक प्लांट स्थापित किया है …..

और आज हीरो ग्रुप में लाखों कर्मचारी कार्यरत है ..जिनसे उनकी रोज़ी रोटी चलती है …और इस पूरी सफलता के पीछे जिस व्यक्ति का हाथ है वो हैं बृजमोहन मुंजाल.

पाकिस्तान के लायलपुर से दिल्ली आकर उस छोटे से मकान से साइकल बनाने से लेकर 5000 करोड़ का सामराज्य खड़ा करना कोई बच्चों का खेल नहीं था. शून्य से शिखर तक पहुँचने पहुचने में हीरो समूह को दुनिया भर की चुनौतियों परेशानियों का सामना करना पड़ा है.

और हीरो समूह को शून्य से शिखर तक पहुँचाने के पीछे जो इंसान है उसका नाम है बृजमोहनलाल मुंजाल …आज जहाँ भाई भाई में कोई पार्टनरशिप नहीं हो पाती रिलाएंस जैसी कम्पनी में भी संपत्ति को लेकर विवाद हो जाता है ऐसे में मुंजाल परिवार के चारों भाई एक साथ मिलकर व्यापार करते हैं और महज़ कुछ रुपयों के साथ शुरू किया गया उनका साइकल का कारोबार उन्हें अरब पति बना देता है.

मुंजाल परिवार हमें आज भी संयुक्त परिवार की शक्ति का उदाहरण देता है …और बताता है कि मजबूत इच्छा शक्ति आपको फर्श से अर्श तक पंहुचा सकती है …बस भरोसा रखिये अपनी क्षमताओं पर. और अपने सपनों को मरने मत दीजिये, देखियेगा सफलता आपके कदमो में होगी.


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